शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

थाप thaap – लीना मेहेंदळे

 थाप thaap – लीना मेहेंदळे

जब कहानी का भूत कमरे में आया
-- लीना मेहेंदले

घटना है सन्‌ १९६९ की जब मैं पटना विश्र्वविद्यालय की छात्रा थी और विश्र्वविद्यालय के महिला छात्रावास में रहती थी। एम.ए. और एम्‌.एस्‌.सी. के पहली वर्ष की छात्राओं को सबसे ऊपर दूसरी मंजिल पर कमरे मिलते थे। वहाँ खुली बालकनी, नई सहेलियाँ, नया विश्र्वविद्यालय आदि की वजह से पढाई का सिलसिला कुछ कम ही रहता था। नियमानुसार साढ़े छः से साढ़े आठ बजे तक स्टडी पीरियड हुआ करता था। लेकिन यह समय भी प्रायः गप्पें लडाने में ही बीतता। बहरहाल मेरे रूम में हम तीनों के लिये एक मुसीबत थी- रोज रोज प्रॅक्टीकल्स की रिपोर्ट लिखना- मुझे फिजिक्स में, अपराजिता को प्राणिशास्त्र में और माया को मानसशास्त्र में। सुविधा के लिये हमने आपस में यह नियम बनाया था कि जबतक तीनों में से किसी एक का भी प्रॅक्टीकल रिपोर्ट लिखना बाकी हो, स्टडी पीरियड में न कोई रूम से बाहर जायगी और न किसी की कोई सहेली बाहर से आयेगी। कई बार इस नियम के कारण हमें दूसरी लडकियों के तानों का शिकार भी बनना पडता।
ऐसी ही एक शाम थी जब तेज-तेज हवाएँ चल रही थी। बारिश के आसार थे। अचानक बत्त्िायाँ गुल हो गईं। हमने मोमबत्त्िायाँ जलाई और हवा को रोकने के लिये कमरे का दरवाजा भिडा दिया। फिर पढाई का मूड किसका रहना था? माया का प्रॅक्टीकल लिखना बाकी था। मैंने और अपराजिता के गप्पें लडानी शुरू कर दीं। पहले फुसफुसाहट में, किताबों के ऊपर से आंकते हुए- फिर तसल्ली से, किताबें अलग रखकर। बातों ही बातों में बातों का सिलसिला भूतों पर आ पहुँचा। इस बीच कई लडकियाँ बालकनी में पहुँच कर बातें कर रही थीं जिसका हमें पता ही नही चला। ज्यों ज्यों भूतों की बातें बढती गईं, माया का ध्यान भी पढाई से हटकर कहानियों पर आ गया।
कुछ दिन पहले पढी हुई एक कहानी सुनाना मैंने शुरू किया। चार दोस्त थे। उनमें से एक को कोई सिद्धी मिल गई जिससे भादों की अमावस की रात को एक भूत बुलाया जा सकता था जो खजाने दे सकता था। पहले-पहले प्रयोग के लिये सिद्ध ने अपने तीनों मित्रों को भी बुलाया। एक शमशान में जाकर मंत्र-तंत्र की सहायता से भूत बुलवाया गया और उसे आज्ञा हुई की खजाना चाहिये। भूत ने पहले मनुष्यबली की माँग की। सिद्ध के पास सोचने के लिये समय नही था। उसने फौरन अपने एक पडोसी का नाम लेकर उसे बलि बताते हुए कुछ मंत्रपाठ किया। थोडी ही देर में मित्रों ने देखा कि सामने पैसे भरी एक थैली पडी थी। लेकिन दूसरे दिन अखबारों में पढने को मिला की सिद्ध के पडोसी का किसी ने गला दबाकर खून किया था।
दिन बीतते गये। उन तीन मित्रों में से एक को कहीं बाहर नौकरी मिल गई। करीब दो वर्षों के बाद उसे पता चला कि बाकी दो मित्रों का रहस्यमय स्थितियों में खून हुआ था। इस मित्र को रहस्यभेद समझने में देर न लगी। साथ यह भी ख्याल आया कि हो न हो अगले वर्ष भादों की अमावस को शायद उसका ही नंबर है।
अगले वर्ष भादों की अमावस को वह मित्र एक गाँव में शादी पर निमंत्रित था। अचानक उसे ऐसा लगा मानों दूर कहीं से तेज हवा, आंधी पास आ रही हो। डरा हुआ तो वह था ही, उसने अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया और कमरे की सारी खिडकियाँ, रोशनदान और दरवाजे बंद कर लिये। अन्दर एक पेट्रोमॅक्स जल रहा था। जीवन से करीब करीब हताश यह मित्र एक बिस्तर पर लेटा रहा। आंधी की आवाज धीरे धीरे पास आती गई और उसने मानों बवण्डर का रूप धर लिया। अचानक पेट्रोमॅक्स की बत्ती भी भडककर बुझ गई। और तभी दरवाजे पर एक जोरदार थाप पडी................
और तभी हमारे दरवाजे पर वास्तव में एक जोरदार थाप पडी और झन्नाटे से दरवाजा खुल गया। माया की तो चीख ही निकल गई। अपराजिता ने रिफ्लैक्स ऐक्शन से अपनी आँखें ढँक लीं। एक क्षण को मेरे भी हाथ-पैर सुन्न हो गये। और एक लडकी जो दरवाजा खोलकर अन्दर आ रही थी, अवाक्‌ दरवाजे पर ही खडी रही।
चीख की आवाज सुनकर और भी लडकियाँ आ गईं। पूरी बात जानने पर तो हंसी के फव्वारे छूटे जिसमें हम सभी शामिल हो लिये। लेकिन उस एक पल की याद अब भी भुलाये नही भूलती।
---------------------------------------------------------------------------

कोई टिप्पणी नहीं: